आज फिर से गरीबी हटाओ का नारा लगाया जा रहा है! कांग्रेस इस नारे को दोबारा से भुनाने की तेयारी में है! पूर्व प्रधानमन्त्री स्वर्गीय इंदिरा गाँधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था! और एक लहर चली थी ! कांग्रेस की सरकार तो बनती रही नारा भी चलता रहा मगर गरीबी हटी नही बल्कि बढती गयी! सरकारी आयोग हे चिल्लाते रहे की गरीब बढ रहे है लेकिन सरकारे आंकड़े दिखा रही है शेयर में उछाल दिखाती है और gdp दिखाती है! लेकिन कोई गरीब को रोटी और काम की बात नही करता है! चुनाव है तो कांग्रेस जो की केंद्र में सत्ता में है तरह तरह से अपनेको गरीब हितेषी बता रही है! जबकी सबसे अधिक शासन करने वालीकांग्रेस क्यों भूल जाती है की सिर्फनारे बाज़ी हो रही है कोई काम नहीहो रहा! कभी गरीबी हटाओ के नाम पर कभी आम आदमी के नाम पर सच्चाई तो यह है की नारा केवलशब्द तक ही सीमित रहा ! आज कांग्रेस फिर से गरीबी हटाओ काअलाप कर रही है तो कोई प्रसन्नतावाली बात नही है! कोंग्रेस के युवराजने दो भारत की बात कही है एकगरीब और एक अमीर और कोंग्रेसका हाथ दुसरे गरीब वाले भारत के साथ बता कर अपनी पारिवारिक नारेबाजी की परंपरा का निर्वहन कररहे है! कोंग्रेस की बैठक में सब तरहसे चर्चा हुई और सोनिया गाँधी भी सरकार से खफा खफा नज़र आई , और कहा की शेयर मार्किट से गरीब का भला होने वाला नही! लेकिन यहाँजरुरी ये बात थी की अपने कृषि मंत्री के मुद्दे पर दस दिन और दोहफ्ते का आश्वासन देते है कभी कहते है की वो कोई ज्योत्षी नही है! महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री कहते है की आदर्श कालोनी का कारगिल से लेनादेना नही जबकि वहा के गृह सचिव कहते है की भूमि की इज़ाज़त कारगिल के नाम पर ली है! भ्रष्टाचार से घिरी कांग्रेस का दो भारत और गरीबी हटाओ या आम आदमी जैसे नारों से पहले अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोप पर स्पष्टीकरण देना चाहिए और सोनिया और राहुल खुद को संघठन का आदमी बताने सेनही चूक रहे है लेकिन अपनी सरकार को कोई निर्देश सकारात्मक दिशा में नही दे रहे है! ऐसा दोगलापन क्यों? भारत आज दो भारत क्यों बना इसकी चर्चा भी जरुरी है! सबसे जरुरी है की सरकार गंभीर हो कर काम करे! नारे की नही सही नीतियों की जरुरत है और उससे भी ज्यादा जरुरत है नीतियों के सटीक कार्यान्वयन की! इसकी जिम्मेवारी प्रमुख रूप से सरकार पर है और अगर गरीबो के हितेषी बनकर छाती पीटने वाले सहयोग करेंगे तो लाभ होगा! GDP
यारो किसी माहौल में ढलता नहीं हूँ मैं ! ठोकर लगे तो राह बदलता नहीं हूँ मैं !! रख दूँ जहाँ कदम नए रास्ते बनें ! खीचीं हुई लकीरों पर चलता नहीं हूँ मैं !!
Wednesday, November 3, 2010
Tuesday, November 2, 2010
कश्मीर को चाहिए काम, रोटी और कलम
सर्दी का मौसम सर पर है लेकिन कश्मीर की आग की गर्मी से सारा भारत तप रहा है! राजनीतिक दलों के बीच भी जुंग ज़ारी है और अन्य लोग भी इसमें कूद चुके है! अरुन्धती रॉय का कहना है की भारत का कश्मीर अभिन्न अंग नही है! बहुत से लोग बहुत कुछ कह रहे है! वहा के मुख्यमंत्री कहते है कश्मीर का विलय भारत में नही हुआ है! इस तरह से अलगाववाद को बढ़ावा देने में होड़ मची है ऐसा साबित कर रहे है! कश्मीर समस्या है क्या इसको समझने की जरुरत भी है ! आज देखा जाए तो कश्मीर समस्या को आजादी के बाद से जोड़ कर देखा जाता है ! जबकि असली समस्या तब से शुरू हुई जब से वहा जबरन मतान्तरण शुरू हुआ! मतान्तरण के बाद वहा पर जिसने इस्लाम स्वीकार नही किया उसको प्रताड़ित किया गया और लाखो लोगो को तो घाटी छोड़ के भागना पड़ा जिनको कश्मीरी पंडित कहा जाता है! कश्मीरी पंडित वो लोग है जिन्होंने अपना धर्म परिवर्तित नही किया! आज कोन सी आज़ादी की मांग की जा रही है? कैसी आजादी चाहिए ? किस से आजादी चाहिए और क्यों आजादी चाहिए? वहा का माहोल तो कुछ और ही कह रहा है ! वहा तो और ही बात हो रही है! वहा जो हो रहा है उसे अलगाववाद कहते है! कश्मीर के लोगो को समस्या हो सकती है! हो सकता है की उनको वो सब नही मिला हो जो मिलना चाहिए! मानाजा सकता है की उनको रोज़गार नही मिला , कोई लाभ नही मिला ये मुद्दा और है! ये मुद्दा सरकार की नाकामयाबी से जुदा है! केंद्र और प्रदेश सरकार इस के लिए सीधे तौर पर जिम्मेवार है और आज जो हो रहा है वो मुद्दे से हट कर हो रहा है! मुद्दा है वहा के लोग क्यों असंतुष्ट है? जो धरा ३७० के कारण वहा के लोगो को अधिकार मिले है उसके बाद भी असंतुष्ट क्यों है?
इतनी घोषनाए इतने वादे इतनी बातें फिर भी हंगामा ! व्यवस्था की असफलता ही इसका कारण है! लेकिन इस मुद्दे को सुलझाने के स्थान पर राजनीति हो रही है! और अलगाववादी लोग इसका फायदा उठा रहे है! वहा के लोग रुष्ट हो सकते है लेकिन जो सियासी पत्थर उनके हाथो में है वो कुछ और हे कहानी कह रहे है! सियासत हो रही है और कुछ लोग देश को बाँटने की कोशिशो में लगे हुए है! दो विचार चल रहे है! एक वहा की हालत से सम्बंधित हो सकता है की सरकार असफल हुई है दूसरी जो बात चल रही है वो ज्यादा खतरनाक है! ये विचार हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और को चरितार्थ करता है! अलगाववाद नाम के इस ज़हर ने आज खतरनाक रंग ले लिया है! आज बात होती है गरीबी और मानवाधिकार की लेकिन इस के पीछे अलगाववाद की फसल बोयी और काटी जा रही है! आजादी मांग रहे है उस देश से जो कुछ न लेते हुए कश्मीर को सब कुछ दे रहा है! अगर कुछ समस्या है तो उसे सुलझाने का रास्ता ये नही है जो हो रहा है! भारत का झंडा जला कर और पकिस्तान की भाषा बोल के गरीबी दूर नही होगी! बल्कि उन लोगो को बेनकाब करना होगा जिन के कारण आज कश्मीर में आग है और सर्द फिजाओं में अलगाववाद चरम पर है! और सत्ता का गलियारा राजनीती में व्यस्त है! वहा के सियासी पत्थर का जवाब देने से नही बन रहा है इसका कारण क्या है? कोन है जिसके कारण आज कश्मीर इतने प्रयास के बाद भी पत्थर बाज़ी में व्यस्त है? क्यों सुबह एक धमाके से शाम एक मातम से होती है? क्यों इस जन्नत में इतनी आग है? क्या है जो भारत का ताज आज जल रहा है? इसका चिंतन करने का समय निकल चुका है लेकिन अभी भी कुछ हो सकता है! इतिहास की भूल को ध्यान में रखते हुए किसी भी बहरी दबाव के बिना अपने विवेक से भारत का फैसला होना चाहिए जो भारत को जोड़ने में सहायक हो! एक बात आई थी की पत्थर फैंकने वाले हाथो को काम मिले! य भी सही है और वहा के मुख्यमंत्री ने कोई घोषणा भी की है लेकिन वो प्रयास विफल क्यों हुए जो पूर्व में किये गये थे इसकी समीक्षा करने का भी यह उचित समय है! अरबो की धनराशी जो वहा व्यय होनी थी वो क्यों नही हुई? हुई तो कहा हुई इस बात पर भी जवाबदेही सुनिश्चित हो! कश्मीर की समस्या जो लग रही है वो बहुत प्राचीन है और ये समस्या तुष्टिकरण की नीति से और ज्यादा बढ गयी है ! आज अलगाववादी नेता डेल्ही में आ कर भाषण दे कर जा रहे है केसी शर्मनाक बात है? एक पत्रकार यहाँ तक की मुख्यमंत्री जो भारत में मंत्री भी रह चुके है कहते है की कश्मीर का भारत में विलय नही हुआ है! भारत का अभिन्न अंग कश्मीर आज तेजधार वाली तलवार र चल रहा है जहा आम जनता को बहलाने के लिए भूख गरीबी और हक- हकूक की बात हो रही है लेकिन असल में अलगाववाद का झंडा बुलंद हो रहा है! ऐसे समय में सरकार की कुशलता पर प्रश्न चिन्ह लगता है ख़ास तौर पर तब जब भारत सरकार के स्वामी महमोहन सिंह जी कहते है की कश्मीर को स्वायत्त राज्य बनाने पर विचार किया जा सकता है! कश्मीर को आज एक सुलझा हुआ राष्ट्रवादी नेतृत्व चाहिए उस से भी पहले "भूल" सुधार होना जरूरी है! तुष्टिकरण किसी का भी हितकारी नही है! सारा देश देख चुका है की ३७० धरा से कश्मीर ने कितनी उन्नति की है! इस लिए वहा भी भारत का संविधान हो पूरी तरह से! किसी मुख्यमंत्री को प्रधान मंत्री कहने से विकास नही होता है वरन मुख्यमंत्री की सोच जनता से जुडी होनी चहिये१ भारत में तिरंगे से बढकर संविधान से हटकर कुछ भी होना हितकारी नही है! आज कश्मीर को जरुरत है एक बेहतर प्रशासनिक और राजनीतिक ढाँचे की! जिन हाथो में सियासी पत्थर है उन हाथो को कलम और काम देने की! और जो मासूम हाथो में पत्थर थमा कर अपनी सियासी चाले चल रहे है उन हाथो को काट फेंकने की!हम सभी को सोचना चाहिए की धरा ३७० से कश्मीर और अन्धकार में जा रहा है! वहा कितना पैसा कहा लगा कोई सवाल नही कर सकता ! कोई पूछ नही सकता ! कोई सूचना का अधिकार लागू नही है! इस सब से आम जनता का लाभ केसे हो सकता है! आम जनता को आज कलम काम और रोटी की जरुरत है१ किसी धरा या आजादी की नही ! आजादी यदि चाहिए तो अलगाववाद से! अलगाववादियों से! एक बार फिर मेरा आवाहन युवा शक्ति से है की कश्मीर हमारा अपना प्रदेश है! वहा जो हो रहा है उसका सीधा असर हम पर पड़ता है क्यों की भारत का अभिन्न अंग है! समस्या को सोचे समझे और आगे बड़े ! ! कश्मीर में काम कलम और रोटी का प्रबंध सरकार करे और राजनीती बंद हो! नही तो एक भूल जो हुई थी उसे आज दोहराने की तेयारी हो रही है! और अगर ऐसा हुआ तो आने वाला समय में जन्नत नासूर बन जाएगी और हम कोसते रह जायेंगे!
अब समय आ गया है की कश्मीर पर नीति स्पष्ट हो सीढ़ी बात हो सीधा वार हो! समस्या को उलझाने वालो को सीधा जवाब दिया जाए और कश्मीरी और जम्मू प्रदेश की समस्या का समाधान हो ...काम कलम और रोटी एक नारा न बन के रह जाए बल्कि एक मिशन हो और पूराहो!
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