सर्दी का मौसम सर पर है लेकिन कश्मीर की आग की गर्मी से सारा भारत तप रहा है! राजनीतिक दलों के बीच भी जुंग ज़ारी है और अन्य लोग भी इसमें कूद चुके है! अरुन्धती रॉय का कहना है की भारत का कश्मीर अभिन्न अंग नही है! बहुत से लोग बहुत कुछ कह रहे है! वहा के मुख्यमंत्री कहते है कश्मीर का विलय भारत में नही हुआ है! इस तरह से अलगाववाद को बढ़ावा देने में होड़ मची है ऐसा साबित कर रहे है! कश्मीर समस्या है क्या इसको समझने की जरुरत भी है ! आज देखा जाए तो कश्मीर समस्या को आजादी के बाद से जोड़ कर देखा जाता है ! जबकि असली समस्या तब से शुरू हुई जब से वहा जबरन मतान्तरण शुरू हुआ! मतान्तरण के बाद वहा पर जिसने इस्लाम स्वीकार नही किया उसको प्रताड़ित किया गया और लाखो लोगो को तो घाटी छोड़ के भागना पड़ा जिनको कश्मीरी पंडित कहा जाता है! कश्मीरी पंडित वो लोग है जिन्होंने अपना धर्म परिवर्तित नही किया! आज कोन सी आज़ादी की मांग की जा रही है? कैसी आजादी चाहिए ? किस से आजादी चाहिए और क्यों आजादी चाहिए? वहा का माहोल तो कुछ और ही कह रहा है ! वहा तो और ही बात हो रही है! वहा जो हो रहा है उसे अलगाववाद कहते है! कश्मीर के लोगो को समस्या हो सकती है! हो सकता है की उनको वो सब नही मिला हो जो मिलना चाहिए! मानाजा सकता है की उनको रोज़गार नही मिला , कोई लाभ नही मिला ये मुद्दा और है! ये मुद्दा सरकार की नाकामयाबी से जुदा है! केंद्र और प्रदेश सरकार इस के लिए सीधे तौर पर जिम्मेवार है और आज जो हो रहा है वो मुद्दे से हट कर हो रहा है! मुद्दा है वहा के लोग क्यों असंतुष्ट है? जो धरा ३७० के कारण वहा के लोगो को अधिकार मिले है उसके बाद भी असंतुष्ट क्यों है?
इतनी घोषनाए इतने वादे इतनी बातें फिर भी हंगामा ! व्यवस्था की असफलता ही इसका कारण है! लेकिन इस मुद्दे को सुलझाने के स्थान पर राजनीति हो रही है! और अलगाववादी लोग इसका फायदा उठा रहे है! वहा के लोग रुष्ट हो सकते है लेकिन जो सियासी पत्थर उनके हाथो में है वो कुछ और हे कहानी कह रहे है! सियासत हो रही है और कुछ लोग देश को बाँटने की कोशिशो में लगे हुए है! दो विचार चल रहे है! एक वहा की हालत से सम्बंधित हो सकता है की सरकार असफल हुई है दूसरी जो बात चल रही है वो ज्यादा खतरनाक है! ये विचार हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और को चरितार्थ करता है! अलगाववाद नाम के इस ज़हर ने आज खतरनाक रंग ले लिया है! आज बात होती है गरीबी और मानवाधिकार की लेकिन इस के पीछे अलगाववाद की फसल बोयी और काटी जा रही है! आजादी मांग रहे है उस देश से जो कुछ न लेते हुए कश्मीर को सब कुछ दे रहा है! अगर कुछ समस्या है तो उसे सुलझाने का रास्ता ये नही है जो हो रहा है! भारत का झंडा जला कर और पकिस्तान की भाषा बोल के गरीबी दूर नही होगी! बल्कि उन लोगो को बेनकाब करना होगा जिन के कारण आज कश्मीर में आग है और सर्द फिजाओं में अलगाववाद चरम पर है! और सत्ता का गलियारा राजनीती में व्यस्त है! वहा के सियासी पत्थर का जवाब देने से नही बन रहा है इसका कारण क्या है? कोन है जिसके कारण आज कश्मीर इतने प्रयास के बाद भी पत्थर बाज़ी में व्यस्त है? क्यों सुबह एक धमाके से शाम एक मातम से होती है? क्यों इस जन्नत में इतनी आग है? क्या है जो भारत का ताज आज जल रहा है? इसका चिंतन करने का समय निकल चुका है लेकिन अभी भी कुछ हो सकता है! इतिहास की भूल को ध्यान में रखते हुए किसी भी बहरी दबाव के बिना अपने विवेक से भारत का फैसला होना चाहिए जो भारत को जोड़ने में सहायक हो! एक बात आई थी की पत्थर फैंकने वाले हाथो को काम मिले! य भी सही है और वहा के मुख्यमंत्री ने कोई घोषणा भी की है लेकिन वो प्रयास विफल क्यों हुए जो पूर्व में किये गये थे इसकी समीक्षा करने का भी यह उचित समय है! अरबो की धनराशी जो वहा व्यय होनी थी वो क्यों नही हुई? हुई तो कहा हुई इस बात पर भी जवाबदेही सुनिश्चित हो! कश्मीर की समस्या जो लग रही है वो बहुत प्राचीन है और ये समस्या तुष्टिकरण की नीति से और ज्यादा बढ गयी है ! आज अलगाववादी नेता डेल्ही में आ कर भाषण दे कर जा रहे है केसी शर्मनाक बात है? एक पत्रकार यहाँ तक की मुख्यमंत्री जो भारत में मंत्री भी रह चुके है कहते है की कश्मीर का भारत में विलय नही हुआ है! भारत का अभिन्न अंग कश्मीर आज तेजधार वाली तलवार र चल रहा है जहा आम जनता को बहलाने के लिए भूख गरीबी और हक- हकूक की बात हो रही है लेकिन असल में अलगाववाद का झंडा बुलंद हो रहा है! ऐसे समय में सरकार की कुशलता पर प्रश्न चिन्ह लगता है ख़ास तौर पर तब जब भारत सरकार के स्वामी महमोहन सिंह जी कहते है की कश्मीर को स्वायत्त राज्य बनाने पर विचार किया जा सकता है! कश्मीर को आज एक सुलझा हुआ राष्ट्रवादी नेतृत्व चाहिए उस से भी पहले "भूल" सुधार होना जरूरी है! तुष्टिकरण किसी का भी हितकारी नही है! सारा देश देख चुका है की ३७० धरा से कश्मीर ने कितनी उन्नति की है! इस लिए वहा भी भारत का संविधान हो पूरी तरह से! किसी मुख्यमंत्री को प्रधान मंत्री कहने से विकास नही होता है वरन मुख्यमंत्री की सोच जनता से जुडी होनी चहिये१ भारत में तिरंगे से बढकर संविधान से हटकर कुछ भी होना हितकारी नही है! आज कश्मीर को जरुरत है एक बेहतर प्रशासनिक और राजनीतिक ढाँचे की! जिन हाथो में सियासी पत्थर है उन हाथो को कलम और काम देने की! और जो मासूम हाथो में पत्थर थमा कर अपनी सियासी चाले चल रहे है उन हाथो को काट फेंकने की!हम सभी को सोचना चाहिए की धरा ३७० से कश्मीर और अन्धकार में जा रहा है! वहा कितना पैसा कहा लगा कोई सवाल नही कर सकता ! कोई पूछ नही सकता ! कोई सूचना का अधिकार लागू नही है! इस सब से आम जनता का लाभ केसे हो सकता है! आम जनता को आज कलम काम और रोटी की जरुरत है१ किसी धरा या आजादी की नही ! आजादी यदि चाहिए तो अलगाववाद से! अलगाववादियों से! एक बार फिर मेरा आवाहन युवा शक्ति से है की कश्मीर हमारा अपना प्रदेश है! वहा जो हो रहा है उसका सीधा असर हम पर पड़ता है क्यों की भारत का अभिन्न अंग है! समस्या को सोचे समझे और आगे बड़े ! ! कश्मीर में काम कलम और रोटी का प्रबंध सरकार करे और राजनीती बंद हो! नही तो एक भूल जो हुई थी उसे आज दोहराने की तेयारी हो रही है! और अगर ऐसा हुआ तो आने वाला समय में जन्नत नासूर बन जाएगी और हम कोसते रह जायेंगे!
अब समय आ गया है की कश्मीर पर नीति स्पष्ट हो सीढ़ी बात हो सीधा वार हो! समस्या को उलझाने वालो को सीधा जवाब दिया जाए और कश्मीरी और जम्मू प्रदेश की समस्या का समाधान हो ...काम कलम और रोटी एक नारा न बन के रह जाए बल्कि एक मिशन हो और पूराहो!
very true and enlightening saurabh. Arundhati is insane in true meaning of the word.
ReplyDeletehey saurabh ye direct dil se main hoon Parul ok
ReplyDeletekasmir hamara mukut hai ,jiske liya mam kabhi chod nahi sakte .nation first jai jagat
ReplyDeletehamari sarkar kasmir mai viks aur sakcharta ,sath hi rastr prem ka both karne ke karkrim par dhyan de goli nahi boli chahiya nation first jai jagat
ReplyDeleteकश्मीर समस्या के समाधान के लिए राष्ट्रवादी नेताओं के नेत्रित्व में एक समिति बनानी चाहिए |
ReplyDeleteइन कांग्रेसी और खुद को धर्मनिरपेक्ष कहलाने वाले नेताओं से कुछ उम्मीद रखना बेमानी होगी|
पूर्व में नेहरू ने अपने विवादस्पद बयान से, और इंदिरा ने भारतीय भूमि को खोकर भारत और कश्मीर मुद्दे पे कुछ अच्छा नही किया है और न ही उनके सिधान्तो पे चलने वाले मक्कार और चोर कायर नेताओं से हमें कोई उम्मीद है| कश्मीर मुद्दे का सही और उचित समाधान राष्ट्रवादियों के सहयोग से ही संभव है| यही कश्मीर की जनता के लिए भी उचित होगा|