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Friday, October 8, 2010

दिशा बदलनी है..


राजनीति को दलदल कहा जाता है , की इसमें एक बार फंस गया वो निकल नही सकता वरन धंसता ही चला जाता है! ऐसा कहना मेरा नही बल्कि ये एक आम राय है, जो समाज रखता है! और राजनीति का नाम सुन कर अपना नाक मूह सिकोड़ देते है! लेकिन ऐसा है क्या इसमें कोई बता नही सकता! कोई कहता है कि अपराधीकरण कोई कहे व्यापारीकरण और भी कई विचार आते है! लेकिन ये सब बातें तो अपने समाज में भी विद्यमान है!

{जहा हम रहते है उसे हम समाज कहते है!
अपराध भी है यहाँ व्यापार भी है यहाँ
बुराइया भी भरी है दलदल जान पड़ता है
सामान भी है यहाँ , बाज़ार भी है यहाँ!}

तो राजनीति के बारे में ऐसा सोचना क्यों? मेरा मानना है कि राजनीति ही किसी देश की दिशा एवं दशा बदल सकती है लेकिन उसमे समाज की भागीदारी होना भी जरूरी है! युवाओं को शामिल होना भी जरूरी है, कुर्बानी किसे कहते है, अपने आप को तिल तिल जलाना किसे कहते है समाज का पुनर्निर्माण किसे कहते है , उस के क्या क्या लाभ हो सकते है ये सब बातो का ज्ञान होना हमारे लिए जरूरी है! आज में तो इसे विदेशी ताकतों का षड़यंत्र ही कहूँगा और अपनी जो राजनीतिक व्यवस्था है है उसकी भी कमजोरी नज़र पड़ती है! षड़यंत्र यह है की अपने देश को आर्थिक रूप से पंगु कर देना और यहाँ का जो सामाजिक और संस्कृतक ढांचा है उसे छिन्न भिन्न कर देना ताकि समाज में कोई भी ऐसी भावना न रहे जिस से उसका अपने राष्ट्र से कोई सरोकार हो! आज इस षड्यंत्र का " सेम्पल " भी कई बार सामने आता है जब समाज जड़ हो जाता है भावना शून्य हो जाता है
अब राजनीति को देखा जाए तो यहाँ भी कई तरह के तत्व विद्यमान है! बाज़ार भी है व्यापार भी है लेकिन इस बात के लिए हम राजनीति गन्दा खेल है ऐसा नही कह सकते बल्कि हमे सामूहिक जिम्मेदारी लेनी होगी और स्वीकारना होगा इस सच को की राजनीति में जो भी नेतिक पतन हुआ है उस के लिए हम सब जिम्मेवार है! एक नेता को टीवी पर रिश्वत लेते दिखाया जाता है तो हम कई दिन उसकी चर्चा करते है लेकिन वो रिश्वत देने वाला कोन था ? वो तो राजनेता नही था कोई सांसद नही था ! उस बात पर समाज मौन रहता है! जिम्मेवारी लेने से हम डरते है तो हमे किसी की बुराई करने का कोई अधिकार नही है! आज कभी राजनीति की बात आये तो कथित आधुनिक वर्ग अपनी कन्नी काट लेता है और जब कोई काम हो तो रिश्वत जेब में ले के अपनी नाक इसी राजनीति के चरणों में रख देता है! अगर एक पल मान लिया जाए की राजनीति गन्दी है तो भी में ये कहूँगा की उसका अपना एक आस्तित्व है गन्दी है तो है लेकिन इन कथित सामाजिक ठेकेदारों का दोगलापन जो सामने आत है इसे क्या कहेंगे ? लेकिन राजनीति एक गन्दा खेल नही बल्कि समाज का हे दबाव रहता है और कई बार मेहरबानी रहती है कि इसे गन्दा कहा जाता है! हमे यह नही भूलना चाहिए कि देश कि बागडोर हमारे हाथ में है और नौजवान इस देश के पहिये है! सब दुरुस्त रहेगा तो देश रुपी वाहन आगे बढ पायेगा १ लेकिन आज केवल राजनीति और नेताओ की निंदा करना हे परम कर्त्तव्य समझा जाता है! कोई बात हुई तो राजनीति की सहमत आ जाती है! क्या यह सही है क्या यह समाधान है? नही!!
ये समाधान नही हो सकता वरन समस्या को बढाने वाला जरूर हो सकता है आज समाज जागृत नही है यदि है तो सिर्फ अपने अधिकारों के लिए! देश का क्या कोई जनता नही और न ही कोई जानना चाहता है! सब डॉक्टर इंजीनीर बन कर खूब मालामाल होना चाहते है दुनिया कि चकाचौन्द से मुकाबला करना चाहते है लेकिन मेरा एक सवाल है जीवन यापन ठीक है रहन सहन में चकाचौंध भी ठीक है लेकिन इस सब में समाज का जड़ हो जाना और अपनी व्यवस्था का गला घोंट देना सही नही है! अपना देश मेरा पहला कैरियर है! इसकी चिंता जरूरी है आराम भी मिलेगा सुकून भी होगा केवल तभी जब अपना देश मज़बूत होगा! इसकी मजबूती के भी कही द्वार है! केवल तकनीक ही सब कुछ नही है बल्कि संस्कृति और विचार भी जरूरी है इस देश की पहचान आज भी संस्कृति और विचारों से है! इसका संरक्षण करना और भारत का जो विचार है जिसके कारण भारत अपने आप में एक विचारधरा है जिसे हम भारतीयता कहते है! जब यह मज़बूत होगा तब हर घर में रोटी होगी रौशनी होगी और ये रौशनी सार्व विशव को रौशन करेगी ऐसे मेरा मानना है! लेकिन आज के हालात देश को सही दिशा में ले जा रहे है ऐसा नही लगता है! आज समाज का नेतिक पतन इस देश को डुबो रहा है ! राजनीती को जो हमने पंगु बनाया है उसी कारण आज यहाँ निराशावाद का बोलबाला हो रहा है! अपना देश आंतरिक दुश्मनों से और बाहय दुश्मनों से जूझ रहा है! हम कहते है कि तलवारों की धारो से इतिहास हमारा चलता है और आज ये कहने कि नौबत है कि तलवार की धार पर हम चल रहे है! इसके जिम्मेवार हम है! राजनीति कोई गन्दा खेल नही बल्कि राजनीति समाज के विकास का उत्थान का एक माध्यम है बशर्ते इसमें समाज की सकारात्मक भागीदारी हो! वोट की राजनीति नही विकास की राजनीति हो! ऐसा एक कदम इस देश कि दिशा बदल सकता है दिशा बदली तो दशा बदल सकती है और जब दशा बदल जाएगी तो भारत देश पुन: विश्व गुरु के सिंहासन पर बेठेगा ऐसा मेरा मानना भी है स्वप्न भी और में ये चाहता हु कि ये हर भारतीय का स्वप्न हो!

7 comments:

  1. अछ्छा लिखने की कोशिश है, युवा प्रयास है, इसलिये प्रथम दृषटया अनगढ जरूर लगेगा पर इसमें एक वक्ती ताजगी भी है। इसलिये इसे सामन्य नजरिये से नहीं देखना चाहिये।हाँ इसमे वो वाहियात बात तो नहीं है जो आज कल युवराज कर रहे हैं। राजनीति देश के सबी युवाओं का ध्येय नहीं हो सकत है। पर हर सचेत युवा कि जिम्मेदरी अवश्य होनी चाहिये।

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  2. आपके विचारों से मैं सहमत हूँ|
    हमें आपने बीच पनप रहे गंदगियों के अम्बारों को साफ करना होगा|नए युवाओं को और ज्यादा मौका देना होगा, परिवार आधारित राजनितिक दलों को अलविदा कहना होगा|और यही समस्या का हल है| जितना जल्दी हो उतना सही होगा|

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  3. आपका लेख अच्छा लगा। जारी रखें। धन्यवाद!

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  4. शुभकामनाएँ। इसी तरह लिखते रहिए।

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  5. सही बात है.. समस्या से दूर भागने में बहादुरी नहीं है..

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