यारो किसी माहौल में ढलता नहीं हूँ मैं ! ठोकर लगे तो राह बदलता नहीं हूँ मैं !! रख दूँ जहाँ कदम नए रास्ते बनें ! खीचीं हुई लकीरों पर चलता नहीं हूँ मैं !!
Saturday, May 28, 2011
आरक्षण या सशक्तिकरण.....
Friday, February 18, 2011
Coalition is not Loot Permit
Kapil Sibbal came with new development in favour of Congress party that there is Zero loss. He is defending Raja. And now PM is blaming Raja. PM seems to defend himself and blame other for everything. If action taken place according to Sibbal then why Raja is behind the bars. Why govt is not agree on JPC.
Year 2010 is going to remember forever as the years of ‘Unabashed corruption’. Rahul Gandhi who is concentrating on Uttar Pradesh and because of price rise and scams record made by UPA he has no words for common people. Rahul also blamed coalition. And Manmohan Singh also follows him. This is open confession that Govt is helpless. Other word we can say coalition has become the loot permit.
Mr. PM said “I am helpless, this happen in coalition Govt”. All scams and inflation is because of whom? Is he defending himself? Who are the culprits? These excuses were not expected from the PM of the largest democracy of the world. People of India are asking “Who looted us”. Who is responsible for? It is only congress lead UPA govt. If PM is defending then he has to reveal that who is behind all these scams. PM wasted his time to defend his party and himself. Is it ok to enjoy power with help of coalition and blaming them for scandals and inflation? Corruption and price rise has become the headache of common man, and power hungry people in govt are in crores.
They are enjoying the umbrella of 2000 Rs and refrigerator of 45000 on rent. And common man is managing two time meal with great difficulty. And govt is saying that standard of living has been raised. Govt is in total failure. PM and Congress has to answer common people, whom he is befooling by blame coalition. If there is such partner in govt who is culprit kick him away from the govt. congress lead govt is enjoying the tears of common man. One hand he is blaming coalition other hand with help of them enjoying the power and putting the common man in hot pan.
I want to correct or suggest that it’s not coalition who makes govt helpless but it’s the greed of power, as assembly election are coming in many state and congress is dreaming to lead with help of same coalition party whom Prime minister is blaming.
Saurabh chauhan
SHIMLA
Thursday, February 3, 2011
घोटालो का शोर
Wednesday, January 26, 2011
भारत के संसाधन भारत के खिलाफ

भारत एकता यात्रा युवाओं का संघर्ष है, वो संघर्ष जो भारत को एक रखने के लिए और कश्मीर अपना अभिन्न अंग है ऐसी भावना के साथ शुरू हुआ ! तिरंगे के सम्मान की खातिर शुरू हुई इस यात्रा को भटकाने की कोशिश की जा रही है! एकता यात्रा तमाचा है ! लेकी ये तमाचा किस के मूंह पर है ये देखने की बात है! तमाचा था अलगाववादियों के मूंह पर और दर्द हो रहा है भारत की सरकार को अमर अब्दुल्ला को! सेना का मनोबल गिराने को आतुर ये कथित सरकार निंदा के काबिल है! कश्मीर की समस्या क्या है? ये जाने बगेर ही समाधान की बात की जा रहे है! कश्मीर समस्या का मूल है इसका विशेष राज्य का दर्ज़ा धरा ३७०! जम्मूकश्मीर की अलगाववादियों की भोंपू सरकार के सामने अपने देश का झंडा जलता है! मनमोहन सिंह की सरकार गिलानी को भोंकने देती है और जब भारत का युवा अलगाववादियों को जवाब देने जा रहा है तो सरकार को व्यवस्ता याद आती है! केसा शासन हो रहा है अलगाववादियों को राष्ट्रवाद को कुचलने की शर्त पर खुश रखा जा रहा है! जो माहोल पूरे देश में यात्रा से बना था वो वोट की राजनीति को एक झटका था! लेकिन वोट की राजनीति करने वाले इन लोगो को ये रास नही आया! एक तरफ देश की एकता और अखंडता की कसमे खाते है और दूसरी ओर जम्मू और कश्मीर में अलगाववादियों के पैरो में गिरते है! उनकी भाषा बोलते है! और ये भाषा बोलने वाले आसानी से स्वीकार किये जाते है! गिलानी , अरुंधती के भाषणों को कोई नही भूला है लेकिन उनको सजा के नाम पर कुछ नही मिला बल्कि उनको मुफ्त की मशहूरी मिली है! जम्मू और कश्मीर जो हर चीज़ के लिए केंद्र पर निर्भर है और जहा की जनसँख्या लगभग २ प्रतिशत और और देश के संसाधन का लगभग १२ प्रतिशत वहा खर्च होता है फिर भी शान्ति नही है और अलगाववाद का बोलबाला है, इतना बदतर राज है की तिरंगा यात्रा को रोका जाता है माहोल बिगड़ने के नाम पर? केसा माहोल है वहा का जो राष्ट्रीय ध्वज के फेहराने से बिगड़ जायेगा? हम आज एक ऐसे भारत में रह रहे है कि जहा तिरंगा फेहराने को ले कर कई लोगो को पसीने आ रहे है! देश की युवा शक्ति कूच करती है उन्हें व्यवस्था बिगड़ने के नाम पर रोका जाता है! ऐसी केसी व्यवस्था हो गयी है कश्मीर में? कोन सी व्यवस्था है ,? बाकी राज्यों में तो ऐसा नही होता? इतनी सहायता फिर भी व्यवस्था भारतीयता और राष्ट्रवाद के खिलाफ बोल रही है! पिछले दिनों वहा इतना संघर्ष हुआ सेना ने एक गोली नही चलाई लेकिन सेना पर पथराव हुआ तब व्यवस्था केसी थी? तब कोन थे वहा जब भारत का झंडा जलता है और पाकिस्तान कि जय जैकार होती है!? क्या अब ये सब होगा? हो भी सकता है, दिल्ली में है कांग्रेस शाही , कश्मीर में है अब्दुल्लाशाही!
जब जब इन दोनों में दोस्ती हुई राष्ट्रवाद को खतरा हुआ है! जो दर्द जो जख्म शेइख-नेहरु की दोस्ती ने दिया आज ओमर-राहुल भी उसी राह पर चले है! पहले जांच हो, कि जो सहायता कश्मीर को मिलती है उसका सही उपयग क्यों नही होता? क्यों हालात में सुधार नही है! क्यों कि कश्मीर के मुख्यमंत्री गरीबी का रोना रोते है जबकि दिल्ली से मूंह माँगा मिलता है! हालात देख के जान पड़ता है कि वो राशी जो जम्मू और कश्मीर के लोगो के लिए है गलत हाथो में जा रही है! दोस्ती निभाई जा रही है और जख्म को नासूर किया जा रहा है!
सारे देश से युवा शक्ति वहा है और जब कोई दक्षिण भारत , पूर्वी भारत या पश्चिमी/उत्तर का कोई युवा लालचोक पर तिरंगा लहराएगा तो एक सन्देश जाएगा कि भारत का युवा कोई उत्तर दक्षिण का नही भारत का है और सोदूर दक्षिण ,पूर्व से कश्मीर आया है एकता का सन्देश ले कर, और अलगाववादी और उनके भोंपू याद रखे कि आज तिरंगा लहराया है कल उनको भी मार भगायेंगे ऐसा मदद अपने युवा रखते है!
फिर भी एक बात जो अलगाववादी ताकतों के भोंपू और कुछ यहाँ वहा भोंकने वाले कुत्ते याद रखे कि आज भारत का युवा जगा है , ये एक चेतावनी है आखरी मौका है हश्र क्या होगा कल्पना कर ले!
भारत माँ ने आवाज़ लगाई
नही चलेगी अब्दुल्ला शाही
सौरभ शिमला
Monday, January 24, 2011
घाटी के दिल की धड़कन
Saturday, January 22, 2011
देशद्रोहियों से सुर मिलाने वालो को आखरी मौका

भारतीय जनता युवा मोर्चा की एकता यात्रा को मिलता भारी जन समर्थन अलगाववादियों के मूंह पर तमाचा है ! और प्रमाण है कि युवा शक्ति ने जब-२ मोर्चा संभाला तब-2 क्रान्ति हुई है! और एकता यात्रा भी एक क्रांति है! एक संघर्ष है उन नीतियों के खिलाफ जो कई वर्षो से चली आ रही है और कश्मीर को नासूर बना रही है! वोट की राजनीति और एक गलती को छिपाने को की गयी अनेको गलतियां कश्मीर समस्या का मुख्य कारण है! भारतीय जनता पार्टी के यूथ विंग ने जब कश्मीर जा कर लाल चौक पर तिरंगा लहराने का कार्यक्रम बनाया तब से अलगाववादी ताकतों और वोट की राजनीति करने वालो के माथे पर बल पद गया है! और सभी तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग ने यात्रा के पीछे क्या मकसद है उस पर अपनी-२ टिप्पणी शुरू कर दी ! सभी टिप्पणिया देश को तोड़ने वाली लगी और हैरानी हुई कि जब देश का युवा वर्ग कश्मीर में तिरंगा झंडा फेहराना चाहता है और जनजागरण हेतु कोलकाता से कश्मीर तक यात्रा निकाल रहा है तो एक वर्ग जो कि अपने को सभी से ऊपर समझता है टिप्पणिया करना शुरू कर दे और हद तो तब होती है जब जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री ने बयान दिया कि भाजपा कार्यकर्ता कश्मीर में तिरंगा न फेहराये, क्यों कि अधिकारिक कार्यक्रम में तिरंगा फेहराया जायेगा ! लेकिन युवाओं का ये हुजूम लाल चौक तिरंगा फेहराने जाएगा एक सवाल पूछने जायेगा एक जवाब देने जायेगा कि कश्मीर में तिरंगा फेहराया जायेगा सरकारी कार्यक्रम में वो ठीक है लेकिन जो सरेआम देश का राष्ट्र ध्वज जलाया जाता है उसका कौन जिम्मेवार है और ऐसा क्यों होने दिया जाता है! एकता यात्रा जवाब है उन अलगाववादियों को जो कश्मीर को देश से अलग करने पर तुले है और अफ़सोस की बात है केंद्र की सरकार भी ऐसा जुबान बोल रही है जो कही न कही अलगाववादियों को समर्थन दे रही है! पराकाष्टा तब हुई जब जे के एल एफ नाम के एक संघटन के नेता यासीन मलिक ने कहा कि वहा तिरंगा नही बल्कि उनका झंडा फेहराया जायेगा और सभी लोग शान्ति से पचा लेते है!
Wednesday, January 19, 2011
एकता यात्रा एक चेतावनी है !

Saturday, January 15, 2011
पाक अधिकृत कश्मीर भी होगा अपने कब्ज़े में

देश आज एक ऐसे ढर्रे पर है जहा इसकी राष्ट्रीय एकता और अखंडता को खतरा है! यात्रा एक प्रयास है राष्ट्रीय एकता की अलख जगाने का!
सौरभ चौहान
शिमला
Friday, January 14, 2011
यात्रा राष्ट्रीय एकता का बिगुल

भारतीय जनता युवा मोर्चा का राष्ट्रीय स्तर पर बड़े अंतराल के बाद कोई कार्यक्रम है! और इसके प्रति कार्यकर्ताओ में भारी जोश देखा जा रहा है!
Wednesday, January 12, 2011
काश्मीर मार्च : राष्ट्रीय एकता एवं जनजागरण का युवा प्रयास

कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और हमेशा रहेगा। लेकिन, इस समय इसे एक ऐसी गंभीर समस्या के रूप में प्रचारित किया जा रहा है, जिसका समाधन किया जाना अभी शेष है। ऐसा लग रहा है कि मौजूदा सरकार अलगाववादियों के इशारे पर काम करते हुए देश के युवाओं और यहां की जनता को यह विश्वास दिलाना चाह रही है कि कश्मीर और कश्मीरी लोग भारत के नहीं हैं।
पारिवारिक जागीर के तौर पर सत्ता सुख भोग रहे जम्मू कश्मीर के नाकारा मुख्यमंत्री अलगाववादियों की जबान बोल रहे हैं। बिना रीढ़ की केन्द्र सरकार स्वायत्ता देने का वादा कर रही है जो बहुत पहले से ही अनुच्छेद 370 के रूप में मौजूद है। पता नहीं सरकार के दिमाग में क्या चल रहा है। मीडिया का एक हिस्सा भी मानवाधिकार उल्लंघन के बहाने अत्याचार की झूठी कहानियां गढ़ रहा है। ये सभी लोग मिलकर न केवल कश्मीर के, बल्कि समूचे देश के युवाओं को बेवकूफ बना रहे हैं।
आज यह जरूरी हो गया है कि देश को सच्चाई का पता चले। कश्मीर की जनता और खास कर युवाओं को यह बताने की जरूरत है कि वे भारत के हैं और भारत उनका है। जब देश की सरकार ने अपनी इस जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया है, ऐसे में यह देश के युवाओं का काम है कि वे आगे बढ़कर इस जिम्मेदारी को निभाएं।
राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी की युवा शाखा भारतीय जनता युवा मोर्चा ने भारत की जनता को सच्चाई बताने और साथ ही घाटी में मौजूद राष्ट्रवादी युवाओं के साथ भाईचारा जतलाने का अति महत्वपूर्ण काम अपने हाथ में लिया है। आतंकवादियों, उनके पाकिस्तानी आकाओं और तमाम राष्ट्रविरोधी तत्वों को एक कड़ा संदेश देने के लिए भाजयुमो ने श्रीनगर में लालचौक पर जाकर झंडा फहराने का निश्चय किया है।
अलगाववादियों के द्वारा फैलाए जा रहे झूठ का भंडाफोड़ करने के लिए भाजयुमो के कार्यकर्ताओं ने कमर कस ली है। दुख की बात यह है कि अलगाववादियों के कुछ लोग मीडिया और वर्तमान सरकार में भी हैं। ये लोग घाटी के युवाओं को गुमराह करके उन्हें देश के खिलाफ भड़काने में लगे हैं। उन्हें योजनापूर्वक मानवाधिकार उल्लंघन के कपोलकल्पित मामले सुनाए जाते हैं। सोफियाँ का मामला इसका सबसे ताजा उदाहरण है। उन्हें एक ऐसी आजादी का स्वप्न दिखया जा रहा है, जो पाकिस्तान की गुलामी के अलावा कुछ भी नहीं। गिलानी, मीरवाइज और अरुंधती राय जैसे लोग आग भड़काने में लगे हुए हैं। उनकी भरपूर कोशिश है कि कश्मीरी युवाओं को राष्ट्र की मुख्य धारा से काट कर अलग-थलग कर दिया जाए।
आज यह जरूरी हो गया है कि देश के लोगों को कश्मीर के बारे में सच्चाई बतलाई जाए और सच्चाई यह है :
- कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, इस बात को लेकर कभी कोई विवाद नहीं रहा है। यहां तक कि जम्मू कश्मीर का अपना जो अलग संविधन है (अनुच्छेद 370 की बदौलत),उसकी धारा (3) में स्पष्ट रूप से कहा गया है, ‘‘जम्मू कश्मीर राज्य भारतीय संघ का अभिन्न अंग है और रहेगा।’’
- कि 1994 में संसद के दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें कहा गया था, ‘‘जम्मू कश्मीर राज्य भारत का अविभाज्य अंग रहा है और आगे भी रहेगा। इसको देश से अलग करने के किसी भी प्रयास का हर संभव तरीके से प्रतिकार किया जाएगा।’’ प्रस्ताव में आगे कहा गया है, ‘‘यह जरूरी है कि भारत के जम्मू कश्मीरराज्य के उस इलाके को पाकिस्तान खाली करे जिस पर उसने आक्रमण करके अवैध रूप से कब्जा कर रखा है।’’
- कि संसद के उपरोक्त प्रस्ताव के बावजूद हमने अपने अधिकार पर जोर देने का कभी गंभीर प्रयास नहीं किया। यहां तक कि जब पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के गिलगिट-बाल्टिस्तान इलाके में भारी अराजकता पफैली हुई थी, हमने वहां के आंदोलनकारियों के प्रति संवेदना के दो शब्द भी नहीं कहे। जबकि वास्तविकता यह है कि वे आंदोलनकारीवैधानिक रूप से भारत के नागरिक हैं। हमने श्रीनगर मुजफ्फराबाद सड़क मार्ग को खोल दिया, लेकिन कारगिल-स्कार्दू सड़क मार्ग खोलने में कोई रुचि नहीं दिखाई।
- कि सच्चाई यह है कि कश्मीर से जुड़े विवादों को आजादी के समय और उसके बाद भी कई बार सुलझाने के मौके मिले। लेकिन इस दिशा में ईमानदारी से कोई कोशिश नहीं की गई।
- कि 14 नवंबर, 1947 को जब कश्मीर में दुश्मन पूरे उफान पर थे, भारतीय सेना उरी तक पहुंच गई थी। लेकिन तत्कालीन सरकार ने सेना को मुजफ्फराबाद की ओर बढ़ने से रोक कर उसकी दिशा पूंछ की ओर मोड़ दी।
- कि 22 मई, 1948 को भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई शुरू की। 1 जून, 1948 तक हमने टीटवाल पर कब्जा कर लिया था और मुजफ्फराबाद के बहुत नजदीक पहुँच गए थे। उस समय भी आगे की कार्रवायी एक बार फिर रोक दी गयी। इसी प्रकार दिसंबर, 1948 में लद्दाख और पूंछ में भारी सफलता के बाद जब भारतीय सेनाएं पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को पूरी तरह मुक्त कराने की स्थिति में थीं, हमारे नेताओं ने युद्धविराम को स्वीकार कर लिया।
- कि 1965 की लड़ाई के बाद हमने रणनीतिक महत्व के हाजीपीर दर्रे को ताशकंद समझौते के अंतर्गत पाकिस्तान को सौंप दिया, जबकि उसे जीतने के लिए हमारी सेना ने भारी कुर्बानी दी थी। 1972 में शिमला में भी हमने स्थितियों का फायदा नहीं उठाया। कश्मीर के मामले में पाकिस्तान की नकेल कसे बिना हमने उसके 90,000 युद्धबंदियों को मुक्त कर दिया। जिस लड़ाई को हमारे बहादुर सैनिकों ने भारी कुर्बानी देकर जीता था, उसे तत्कालीन सरकार ने वार्ता की मेज पर गंवा दिया।
- कि यह कहना कि अनुच्छेद 370 का मूल आधार जम्मू कश्मीर राज्य में मुसलमानों की बहुसंख्या है, बिल्कुल निराधार और झूठी बात है। पाकिस्तानी आक्रमण और तत्कालीन प्रधनमंत्री नेहरू की नासमझी के कारण पैदा हुई संयुक्त राष्ट्र की भूमिका के चलते अनुच्छेद 370 को एक अस्थायी प्रावधान के रूप में रखा गया था।
- कि नेहरू ने स्वयं वादा किया था कि अनुच्छेद 370 के प्रावधान को धीरे-धीरे समाप्त किया जाएगा।
- कि राष्ट्रवादी मुसलमानों ने अनुच्छेद 370 को भेदभाव पूर्ण कहा था। मौलाना हसरत मोहानी ने इसे खत्म करने की मांग की थी, क्योंकि उनकी राय में इससे जम्मू कश्मीर राज्य अलग-थलग पड़ गया था। न्यायमूर्ति एम.सी. छागला ने भी 1964 में 370 के प्रावधान को हटाने की बात कही थी। यह देश का दुर्भाग्य है कि तब से 46 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन370 का प्रावधान यथावत बना हुआ है।
- कि यह कहना कि बहुसंख्यक कश्मीरी अलगाववादियों के पक्ष में हैं, एक कोरा झूठ है। बहुत कम लोग जानते हैं कि कश्मीरी मुस्लिम जिन तक मुख्यतः अलगाववाद और भीड़ के रूप में हिंसा की भावना सीमित है, वे वास्तव में अल्पमत में हैं। गैर कश्मीरी मुस्लिम जैसे गुज्जर, बखरवाल और करगिल शियाओं के साथ यदि हिन्दुओं, सिखों और बौद्धों को जोड़ दिया जाए तो इन सबकी आबादी राज्य की कुल आबादी की 60 प्रतिशत है।
- कि पाकिस्तान के कट्टर समर्थक लार्ड एवबरी ने वर्ष 2002 में एक जनमत सर्वेक्षण करवाया था जिसके अनुसार केवल 6 प्रतिशत कश्मीरी पाकिस्तान में मिलना चाह रहे थे। उपरोक्त जनमत सर्वेक्षण के अनुसार 61 प्रतिशत कश्मीरी भारत के साथ रहना चाहते हैं।
- कि अभी हाल ही में मई 2010 में लंदन विश्वविद्यालय के किंग्स कालेज ने कश्मीर में इसी तरह का एक सर्वेक्षण करवाया था। लिबिया के शासक कर्नल गद्दाफी के बेटे सैफ अल इस्लाम की पहल पर किए गए इस सर्वेक्षण के नतीजे चौंकाने वाले हैं। इसके अनुसार कश्मीर में केवल 2 प्रतिशत लोग ही पाकिस्तान के साथ जाने को तैयार हैं।
- कि अलगाववादी नेता गिलानी ने अफजल गुरु को रिहा करने की मांग की है। यह अफजल गुरु कोई और नहीं बल्कि संसद पर हमले का दोषी है जिसे अदालत ने मृत्युदंड की सजा सुनाई है। ऐसी मांग करने वाला व्यक्ति पाकिस्तानी एजेंट नहीं तो और क्या हो सकता है।
- कि कश्मीर में पत्थरबाजी करने वाले लोग भाड़े पर लिए गए गुंडे थे। अब यह बात आधिकारिक रूप से साबित हो चुकी है कि पत्थर फेंकने और गलियों में हिंसा फैलाने के बदले अलगाववादियों की ओर से असामाजिक तत्वों को प्रतिदिन 400 रुपए का भुगतान किया गया।
- कि राज्य सरकार के कुछ कर्मचारियों, हुरियत नेताओं और पत्थरबाजों के बीच एक अपवित्र गठजोड़ की बात अब छिपी नहीं रही है। गिलानी और राज्य सरकार के भीतर मौजूद उसके एजेंटों ने सोपोर के फल व्यापारियों से पैसा इकट्ठा किया और इसी पैसे से हर शुक्रवार को पत्थरबाज बदमाशों को भुगतान किया गया। सोपोर की जामा मस्जिद के इमाम अब्दुल लतीपफ लोन ने इस तथ्य की पुष्टि की है।
- कि अलगाववादी अब एक वैकल्पिक रणनीति अपना रहे हैं। आतंकवादी गतिविधियों के घटते प्रभाव और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी अस्वीकार्यता को देखते हुए अलगाववादियों ने हिंसक भीड़ को अपना हथियार बना लिया है। छिटपुट आतंकी वारदात करने की बजाए यह तरीका उन्हें ज्यादा लाभ पहुंचाता है।
- कि चाहे स्कूलों में पढ़ने वाले छोटे बच्चे हों, घरों की महिलाएं हों या बूढ़े-बुजुर्ग, सभी को सुरक्षा बलों और सरकारी भवनों पर पत्थर फेंकने के लिए उकसाया जा रहा है। इस बात की पूरी कोशिश की जाती है कि सुरक्षा बल अपने बचाव में गोली चलाने के लिए मजबूर हो जाएं।
- कि प्रेस की स्वतंत्राता के नाम पर हमने घाटी में चल रहे अलगाववादी प्रेस के साथ-साथ तथाकथित धर्म निरपेक्ष और प्रगतिशील मीडिया को लगातार भारत विरोधी झूठा दुष्प्रचार करने की छूट दे रखी है। देशद्रोह का कानून इनके मामले में निष्प्रभावी हो जाता है।
- कि भारत सरकार प्रतिवर्ष राज्य सरकार को हजारों करोड़ रुपए का अनुदान देती है। इसके बदले राज्य सरकार की कोई स्पष्ट जिम्मेदारी निर्धारित नहीं की जाती। केन्द्र से आए इस पैसे का बड़ा हिस्सा उपद्रवियों (अलगाववादियों) को शांत रखने के लिए खर्च किया जाता है। सरकार अपना पैसा उन नौकरियों के लिए खर्च करती है जिसमें कार्यालय में नियमित उपस्थिति जरूरी नहीं होती, ऐसे पुलों के निर्माण के लिए ठेके दिए जाते हैं, जिनका जमीन पर कोई अस्तित्व ही नहीं होता। और तो और अलगाववादी नेताओं को जेड प्लस सुरक्षा देने के नाम पर भी भारी मात्रा में धन खर्च किया जाता है। पहले पैसा उपद्रव को शह देने वाले बड़े नेताओं तक पहुंचता है, फिर यह धीरे-धीरे पत्थरबाजों और सड़क पर हिंसा करने वाले उपद्रवियों तक पहुंच जाता है।
- कि दूसरे राज्यों के भारतीय नागरिक जम्मू कश्मीर में जमीन जायदाद नहीं खरीद सकते जबकि जम्मू कश्मीर के अधिकतर व्यवसायी और नेता, जिनमें उमर अब्दुल्ला भी शामिल हैं, दिल्ली, बंगलुरु सहित कई बड़े शहरों में बेशकीमती जायदाद के मालिक हैं।
- कि लगभग इन सभी नेताओं के बच्चे कश्मीर से बाहर रहते हैं, उन्हें आधुनिक शिक्षा मिलती है, वे दुनिया की सैर करते हैं और बड़े मजे से रहते हैं। जिहादी जीवनशैली केवल कश्मीर के आम युवाओं के लिए आरक्षित है।
- कि मानवाधिकार उल्लंघन की आड़ लेकर सुरक्षा बलों के खिलाफ किए जा रहे दुष्प्रचार में कोई सच्चाई नहीं है। इस तरह के सारे आरोप झूठे और बेबुनियाद हैं। सच्चाई यह है कि1947 से ही, जब पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर पर पहली बार हमला किया, ये हमारे बहादुर जवान ही हैं, जिन्होंने भारतीय भूभाग के इस अहस्तांतरणीय हिस्से को सुरक्षित रखने के लिए अधिकतम बलिदान दिए हैं।
- कि आज हमारे जवानों को बड़ी निर्लज्जता से बदनाम किया जा रहा है। नीचे दिए गए चित्र से यह साफ हो जाता है कि किसके द्वारा किसके मानवाधिकार का उल्लंघन किया जा रहा है।
- कि इतिहास में मानवाधिकार उल्लंघन की सबसे बड़ी घटना कश्मीरी पंडितों के साथ हुई है। कश्मीर घाटी के इन मूल निवासियों को, जो हिन्दु पुरोहितों के वंशज हैं और जिनका लिखित इतिहास 5000 वर्ष पुराना है, उन्हें उनके घरों से बलपूर्वक बड़ी निर्दयता के साथ बाहर भगा दिया गया। लगभग पांच लाख कश्मीरी पंडित, जो घाटी में कश्मीरी पंडितों की कुल आबादी के 99 प्रतिशत हैं, उन्हें अपना घर और अपनी संपत्ति छोड़ अस्थायी शिविरों में रहना पड़ रहा है। किसी इलाके से समुदाय विशेष को निर्मूल करने की यह सबसे त्रासद घटनाओं में से एक है।
- कि अपने घरों से भगाए गए इनमें से अधिकतर लोग, जिन्हें अपने ही देश में शरणार्थी कहा जाता है, आज भी अस्थायी कैंपों में बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर हैं। लगभग सवा दो लाख पंडित बहुत बुरे हालात में केवल जम्मू में हैं। एक छोटे से कमरे में पांच से छः लोगों का परिवार किसी तरह जिंदगी काटने को मजबूर है। इन कैंपों में अब तक लगभग5000 लोग समय से पहले ही काल के गाल में समा गए हैं।
- कि पंडितों के लगभग 95 प्रतिशत घर लूटे जा चुके हैं। 20,000 घरों में आग लगा दी गई है। 14,430 कारखानों को लूट लिया गया, आग लगा दी गई या उनपर कब्जा कर लिया गया है। पंडितों से जुड़े सैकड़ों स्कूलों एवं मंदिरों को भी मटियामेट कर दिया गया है। दुनिया के स्वनाम धन्य मानवाधिकार संगठन जैसे एमनेस्टी इंटरनेशनल, एशिया वाच एवं अन्य अभी भी कश्मीरी पंडितों पर हुए इस अत्याचार का समुचित ढंग से संज्ञान नहीं ले पाए हैं। वे इस मामले पर अपनी सक्रियता कब दिखाएंगे, यह देखना अभी बाकी है।
- कि प्राचीन संस्कृति वाले एक सभ्य समाज का सुनियोजित संहार होता देख कर भी देश और दुनिया की अंतरात्मा अभी नहीं जागी है। हमारे देश की तथाकथित धर्मनिरपेक्षमीडिया/ मानवाधिकार संगठनों के लिए कश्मीरी पंडितों का क्रूर सामुदायिक संहार दुर्भाग्य वश मानवाधिकार उल्लंघन के दायरे में नहीं आता है। हमारे देश की तथाकथित सांस्कृतिक हस्तियों को खूनी माओवादियों के कैम्प में समय बिताने के लिए पर्याप्त समय है, लेकिन उनके पास कश्मीरी पंडितों के कैंपों में जाने और उनकी दुर्दशा देखने का समय नहीं है।
अब वह समय आ गया है जब देश की जनता, विशेष रूप से युवा इन सच्चाइयों को समझें और निर्णायक कदम उठाएं। कहीं ऐसा न हो कि जब उनकी नींद खुले तब तक सब कुछ समाप्त हो जाए। हमें हर हालत में अलगाववादियों के मंसूबों को नाकाम करना है। उनकी गीदड़भभकी से डरने की कोई जरूरत नहीं है।
1953 में परमिट सिस्टम को धता बताते हुए डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर में प्रवेश किया और वहां पहली बार राष्ट्रीय तिरंगा लहराया था। उस समय उन्होंने नारा दिया था - एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान - नहीं चलेगा, नहीं चलेगा, नहीं चलेगा।
डा. मुखर्जी ने कश्मीर में अपने जीवन की आहुति देकर उपरोक्त नारे में कहे गए तीन लक्ष्यों में से दो को तो हासिल कर लिया। लेकिन तीसरा लक्ष्य (अनुच्छेद 370 के अंतर्गत अगल संविधान को हटाना) अभी भी पूरा नहीं हो पाया है।
देश के युवाओं का प्रतिनिधित्व करने वाला संगठन भाजयुमो डा. मुखर्जी के पद चिन्हों पर चलते हुए एक बार फिर श्रीनगर कूच कर रहा है। 26 जनवरी को इसने लाल चौक पर राष्ट्रीय झंडा लहराने को निश्चय किया है। यह अपने आप में एक बड़ा काम है। देश के युवाओं को आगे बढ़कर इसमें हिस्सा लेना चाहिए। मां भारती का मुकुट कश्मीर आज खतरे में है। उसकी लाज बचाने के लिए हम क्या कर सकते हैं, यह सवाल हमें खुद से बार-बार पूछना चाहिए
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