
अपनी एक मित्र कहती है कि पढो समाज बदलने को! काफी कुछ ऐसा घटित हुआ कि मुझे यह कहना पड़ा है कि समाज बदलना नही चाहता! सर्वविदित है कि भारत वर्ष कि पहचान सनातन धर्म है! लेकिन कुछ विकृतियों के कारण इसका स्वरुप बिगाड़ा या कहे कि समाज इसके प्रति उदासीन रहा! और आज जो हालात है सामने है! अपना देश आधुनिकता के नाम पर पश्चमी संस्कृति के नाम पर एक अँधेरी गुफा में जा रहा है जिसका कोई अंत नही है! समाज में शिक्षा का महत्त्व भी है लेकिन क्या समाज आज कि शिक्षा से बदल रहा है?
इस से पहले ये जान ले कि क्या बदलाव जरुरी है? जाति प्रथा , लड़का लड़की में भेदभाव, दहेज़ प्रथा, और भी कई ऐसे बंधन है जिसे समाज के नियम कहा जाता है! और ये नियम सिर्फ माध्यम वर्ग पर लागू होते है, उच्च वर्ग के तो पीछे चलते है और माध्यम वर्ग का जीना हराम करते है! क्या है समाज और क्यों है इसके ऐसे नियम जिसके कारण कोई अपना जीवन नही जी सकता ? अपने सपनो को अपने हाथो ख़त्म कर के आज भी समाज के नियमो का पालन हो रहा है! शिक्षा का मतलब आधुनिकता है और आधुनिकता का मतलब सिर्फ छोटे कपडे पहनना और हिंदी कि अर्थी निकलना नही बल्कि सामाजिक विकास, विचारो का विकासुन्मुख होना और कुप्रथाओ कि समाप्ति होता है! जब हम इस सब का पालन करेंगे तब हम कह सकते है कि हम आधुनिक है१ लेकिन ऐसा कुछ भी होता नही दिख रहा है! अंग्रेजो द्वारा थोपी गयी शिक्षा पद्दति से आज भी काले अँगरेज़ पैदा हो रहे है जिंक ध्यान कुप्रथाओ पर नही है और वो उस दर्द को नही समाज रहा जो किसी के सपनो के टूटने पर होता है! आज भी दहेज़ प्रथा एक आम रिवाज़ हो गया है भले ही रूप बदल गया हो लेकिन लड़की के पिता का बोझ कम नही हुआ! असल में कहा जाता है कि लड़की बोझ होती है में कहता हू कि लड़की बोझ नही होती बल्कि बोझ हम है जो समाज के इन घटिया नियमो कि खातिर इन कुप्रथाओ को सह रहे है बोझ है ये समाज के नियम जिसके लिए या तो किसी को अपनी जान देनी पड़ती है किसी ज़िन्दगी भर क़र्ज़ में डूबना पड़ता है! क्या ऐसे नियम जरुरी है? ये समाज के कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा बनाए हुए नियम है और ढाल बनाया है अपने धर्म को जब कि धर्म किसी भी ऐसे विचार का पोषण नही करता है ये सब धर्म का विकृत रूप है और इसका जिम्मेवार भी समाज या कुछ तत्व है!
लेकिन पढाई में aisi कोई व्यवस्था नही है जिस से समाज बदल सके! पढाई महज़ दिखावा बन कर रह गयी है कोई भी मानसिक या वैचारिक विकास नही हो रहा है! समस्या वही कि वही है, और सिर्फ हाई प्रोफाइल सोसाइटी के नाम पर भद्दा मज़ाक होता है और सपनो के कातिल नियमो का पोषण होता है!किसी ने जाति से बहार शादी कर ली तो उसका जीना हराम हो जाता है!क्यों? क्या वो इंसान नही है? क्या वो अपने मानव धर्म का पालन नही कर रहा/ रही ? तो क्यों उसे जान से हाथ धोनापद्ता है, क्यों किसी को परिवार कि ख़ुशी के लिए अपने सपनो को तिलांजली देनी पड़ती है? सिर्फ समाज में अपने माँ बाप का सर ऊंचा रहे ! लाखो दहेज़ में दे देते है प्रोतेक्टिओं मोनी दे कर लड़की दे देते है और कोई गारंटी नही कि दोबारा "फिरौती" नही मांगेंगे! क्या ये है समाज के नियम की लड़की को गिरवी रख दो सिर्फ समाज में दिखावे के लिए? क्या उसका जीवन सिर्फ इतना हे है की समाज के नियमो के लिए कुर्बान होना है?
कब सपने हकीकत बनेंगे..या ज़िन्दगी एक सपना बन जाएगी
समाज को बदलने के लिए कोई कदम उठाने कि जरुरत है इस पाखंडी समाज के लिए खुद कुर्बान होने कि नही बल्कि इसको सुधारने के लिए जीने कि जरुरत है......
में तो जीऊंगा...आप भी समाज के नियम को परखे समझे और जीवन का हर पल जिया जाए अपनी मर्ज़ी से जिया जाए अपने सपने का क़त्ल न करना पड़े इसके लिए समाज को सुधारने के कदम उठाए,
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